Hisaab Barabar Review – फिल्म ‘हिसाब बराबर’ ने अपनी रिलीज के साथ ही दर्शकों का ध्यान खींच लिया है।
यह फिल्म एक बैंक घोटाले की कहानी पर आधारित है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि सच और झूठ के बीच की रेखा कितनी पतली हो सकती है। फिल्म की कहानी, अभिनय, निर्देशन और इसकी सामाजिक प्रासंगिकता पर इस रिव्यू में चर्चा की जाएगी।
कहानी की झलक
‘हिसाब बराबर’ की कहानी एक छोटे शहर में बसे एक बैंक घोटाले के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे घोटाला सामने आता है और इसमें कौन-कौन शामिल हैं। यह घोटाला केवल पैसे की चोरी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई परतें हैं जो भ्रष्टाचार, नैतिकता और समाज की कमजोरियों को उजागर करती हैं।
फिल्म का मुख्य पात्र, अर्जुन (मुख्य अभिनेता), एक बैंक कर्मचारी है जो घोटाले का पर्दाफाश करने की कोशिश करता है। लेकिन इस प्रक्रिया में, उसे कई चुनौतियों और दांव-पेंचों का सामना करना पड़ता है।

अर्जुन को यह तय करना होता है कि क्या वह अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इस घोटाले का हिस्सा बने या सच्चाई के लिए लड़े।
अभिनय और निर्देशन
फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले अभिनेता ने अपने किरदार में जान डाल दी है। अर्जुन की भूमिका में उनके संघर्ष और अंतर्द्वंद्व को देखना बेहद प्रभावशाली है। वहीं, सहायक किरदार भी अपने हिस्से के साथ न्याय करते हैं।
निर्देशक ने इस फिल्म को रियलिस्टिक टच देने की पूरी कोशिश की है। छोटे शहर के बैंक, वहां के लोगों का रहन-सहन और उनकी मानसिकता को बारीकी से दिखाया गया है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी भी काबिल-ए-तारीफ है, जो कहानी को और प्रभावी बनाती है।
फिल्म का खास पक्ष
सामाजिक संदेश
फिल्म न केवल एक घोटाले की कहानी बताती है, बल्कि यह इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि समाज में ऐसे मामलों को लेकर कितनी लापरवाही होती है।
थ्रिल और सस्पेंस
फिल्म में सस्पेंस और थ्रिल का भरपूर तड़का है, जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखता है।
रियलिस्टिक अप्रोच
फिल्म की कहानी और किरदार असल जिंदगी के करीब हैं, जो इसे दर्शकों से जोड़ता है।
कमियां
हालांकि ‘हिसाब बराबर’ एक बेहतरीन फिल्म है, लेकिन इसकी धीमी गति कुछ दर्शकों को खल सकती है। वहीं, कुछ दृश्यों को और बेहतर तरीके से दिखाया जा सकता था।
क्या यह फिल्म देखनी चाहिए?
अगर आप सस्पेंस, थ्रिल और समाज की हकीकत पर आधारित कहानियों के शौकीन हैं, तो ‘हिसाब बराबर’ आपके लिए परफेक्ट है। यह फिल्म न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि सोचने पर मजबूर भी करती है।
निष्कर्ष
‘हिसाब बराबर’ एक ऐसी फिल्म है जो बैंकिंग घोटाले जैसे जटिल मुद्दे को बड़ी ही सहजता और प्रभावी तरीके से पेश करती है। अर्जुन की कहानी दर्शकों को न केवल बांधे रखती है, बल्कि भ्रष्टाचार और नैतिकता पर सवाल भी खड़े करती है। फिल्म को एक मौका देना निश्चित रूप से एक अच्छा फैसला होगा।

