भूरेश्वर महादेव या भुरशिंग महादेव जहा से देखा था भगवान् शिव और माता पार्वती ने महाभारत का युद्ध !!
भूरेश्वर महादेव या फिर भुरशिंग महादेव – सोलन और सिरमौर के बीच में बसे एक छोटे से गांव पनवा में स्तिथ है। यह मंदिर शिमला से नाहन रोड मार्ग पर पड़ता है और यह मंदिर पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। कहा जाता है की इस मंदिर की चोटी पर बैठ कर भगवान् शिव और माता पार्वती ने कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध देखा था। भुरशिंग महादेव के दर्शन क लिए लोग बहोत ही आस्था के साथ यहाँ आते है, माना जाता है की यह मंदिर एक भाई बहन के प्यार का प्रतिक है। पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर के आस पास का दृश्य बहुत ही सुन्दर है। मंदिर से आप पंजाब या हरयाणा के मैदान भी देख सकते है। समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 6800 फ़ीट की है।
मंदिर का इतिहास

एक कथित कहानी के तोर पर, माना जाता है की किसी समय एक राजा हुआ करते थे, उनके दो बच्चे थे, एक बेटा जिनका नाम भूरसिंघ था और एक पुत्री जिसका नाम दाहि देवी था। बच्चो की माँ उनके बचपन में ही चल बसी थी, जिसके बाद राजा ने दूसरा विवाह रचाया था। बच्चो की सौतेली माँ उनको बहुत दुःख देती थी, सौतेली माँ से परेशान बच्चे अक्सर पहाड़ की चोटी पर आ जाया करते थे तथा यहाँ पर अपनी बैल बकरियों को चराया करते थे। वे बच्चे शिवलिंग के आस पास खेला करते थे, एक दिन शिव जी ने उन्हें अपने दर्शन दिए, उसी दिन से दोनों भाई-बहन शिवलिंग की पूजा करने लगे। उनकी भक्ति से प्रसन हो कर शिव जी ने उन्हें देव शक्ति प्रदान की, लेकिन आम जनता के लिए दोनों अबोध बालक०बालिका ही थे।
एक दिन एक बछड़ा गम हो गया था जिसके चलते सौतेली माँ ने बच्चो को रात के समय बच्चो को बछड़े को ढूंढ़ने भेज दिया था। बछड़े को ढूंढ़ते जब वे शिवलिंग के पास पोहंचे ने बछड़े को निश्छल पाया, भाई ने बहन को समझा कर वापिस भेज दिया और खुद वही रुक गया । जब अगले दिन भी भाई घर वापिस ना आया तोह राजा और बेटी, भूरसिंघ की तलाश में निकल पड़े। पहाड़ की चोटी पे बछड़े और बेटे निश्छल देखा और देखते ही देखते दोनों अंतर्ध्यान हो गए।
कुछ समय पश्चात, माँ ने दही देवी का विवाह काना कडोह (जो महाबली था परन्तु वास्तव में अंधा था) से करने का निश्चय किया जिसे पिता ने भी स्वीकार कर लिया। जब डोली जा रही थी, तोह बहन अपने भाई से दूर होने के गम को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और इसी वजह से कथाड़ के पास उसने डोली से छलांग लगा दी, बहन 50 किलोमीटर तक निचे जाती गयी और एक पवित्र जलधारा के रूप में प्रकट हो गयी। यह जलधारा देवी नदी के रूप में कई ग्रामों को जल और सिंचाई की सुविधा प्रदान करती हुई हरियाणा प्रदेश में प्रवेश करती है।
इसी की चलते स्थानीय लोगो ने इस मंदिर का नाम भूशिंग महादेव रखा जो आज भी भूरसिंघ महादेव या भूरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
मंदिर में मेले का आयोजन –

हर साल भूरेश्वर महादेव में शिवरात्रि का बहुत ही बड़ा मेला आयोजित किया जाता है जिसमें दूर दूर से लाखो श्रद्धालु बड़ी ही श्रद्धा के साथ महादेव के दर्शन के लिए आते है। दूसरा बड़ा मेला दिवाली के बाद ग्यारवे दिन पर एकादशी पर किया जाता है। इस मेले को बड़ी ही धूम धाम से आयोजित किया जाता है। सारे गांव में झांकिया निकाली जाती है और ढोल नगाड़ो के साथ इस मेले की रौनक को बढ़ाया जाता है।
एकादशी के मेले में भी भी लाखो लोग हिस्सा लेते है और बड़ी भक्ति भाव के साथ यहा आकर भोलेनाथ के दर्शन करते है।
माना जाता है एकादशी के मेले में, मंदिर के देव यहा आते है और मंदिर के पीछे बानी शिल्ला पर नृत्ये भी करते है। लोग उस शिल्ला पर घी वे पैसे भी चढ़ाते है, यह शिल्ला एक नोकीली चट्टान है जिसके निचे बहुत ही गहरी खाई है। फिर भी भगवान् भोलेनाथ की ऐसी कृपा है की देव जब भी नृत्य करते है, उनकी शक्ति उन्हें वहा पर डटे रखती है।
कैसे पुहंचे भूरसिंघ महादेव या भूरेश्वर महादेव –
चंडीगढ़ से इस मंदिर की दूरी लगभग (67.9 km) जो की 2 घंटे और 10 मिनट की है, यह मंदिर शिमला नाहन रोड मार्ग पर पड़ता है और पनवा गांव में स्तिथ है। आप चाहे तो चंडीगढ़ तक या शिमला तक हवाई यात्रा कर आगे टैक्सी करके इस मंदिर तक आ सकते है। मंदिर तक का रास्ता बहुत ही अच्छा बना दिया गया है और आम दिनों में आपको यहाँ पर ज्यादा भीड़ भाड़ में देखने को नहीं मिलेगी। इस मंदिर को घूमने के लिए आपको 2 – 3 घंटे का समय काफी है। मंदिर के पास आप चाहे तो कुछ समय बैठ कर बिता सकते है। यहाँ आस पास के दृश्य इतने सुन्दर है के आपका वहा से जाने का मन नहीं करेगा।



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