क्या आप भी धरती पर रहकर चांद की सैर करना चाहते है ?
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क्या आप भी धरती पर रहकर चांद की सैर करना चाहते है ?

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The moonland of Ladakh – अगर आप धरती पर रहकर चांद की सैर करना चाहते हैं तो लद्दाख की ये जगह है बेस्ट।

चांद के ऊपर बच्चों की लोरी और प्यार-मोहब्बत के गाने या चांदनी रात में चांदी के चम्मच से चटनी चटाई जैसे टंग ट्विस्टर आपने कई बार सुने होंगे। चंद्रमा पर पहला कदम रखने से लेकर उसकी सतह पर पानी की खोज तक, हम इंसान इसके रहस्यों को सुलझाने में लगे हुए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसी जगह भी है जो चंद्रमा की तरह दिखती है?

एडवेंचर प्रेमियों के लिए लेह-लद्दाख किसी स्वर्ग से कम नहीं है। पैंगोंग झील, मैग्नेटिक हिल, लेह पैलेस और चादर ट्रैक से जुड़ी रील्स तो आपने कई बार सोशल मीडिया पर देखी होंगी, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि लेह और कारगिल के बीच एक छोटे-से गांव में इंडिया का मून लैंड भी छिपा हुआ है। आपको बता दें कि लेह से करीब 120 किमी दूर स्थित लामायुरू गांव का नजारा चांद की याद दिलाता है. आइये आपको इसके बारे में कुछ रोचक तथ्य बताते हैं।

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मून लैंड के नाम से मशहूर है ये जगह

लेह से लगभग 120 किमी दूर स्थित लामायुरू गांव को चंद्रमा की भूमि के नाम से जाना जाता है। इस विषय पर एक मीडिया रिपोर्ट में एक वैज्ञानिक का कहना है कि यहां न तो पेड़-पौधे हैं, न ज्यादा हवा और न ही कोई दबाव। यही कारण है। कि इसे लद्दाख का मून लैंड कहा जाता है।

पहले हुआ करती थी झील

लद्दाख के इस चंद्र परिदृश्य का भौगोलिक महत्व भी है। आपको बता दें कि शुष्क क्षेत्र हमेशा ऐसे नहीं होते हैं। ऐसा माना जाता है कि 35-40 हजार साल पहले लामायुरू में एक बड़ी झील थी, जिसमें से पानी तो धीरे-धीरे खत्म हो गया,

लेकिन झील में जमा चिकनी मिट्टी बची रह गई, और जिससे साल दर साल इसमें पड़ने वाली दरारों ने एक ऐसा आकार ले लिया, जो अब हमें चांद और मंगल ग्रह की याद दिलाता है।

ऐसा कहा जाता है कि 11वीं शताब्दी के आसपास, ऋषि नरोपा ने झील को सूखा दिया और वहां एक मठ (Monastery) की स्थापना की। आज लामायुरू मठ लेह-लद्दाख के प्रसिद्ध मठों में से एक है।

वैज्ञानिकों के लिए खजाना है ये जगह

मंगल और चंद्रमा की सतह का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के लिए यह जगह किसी खजाने से कम नहीं है। मंगल पर भी इंसान पानी ढूंढ चुका है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि सैटेलाइट से मिले डेटा को सही ढंग से जानने के लिए धरती पर इन जगहों को समझना और इसपर शोध करना बेहद जरूरी है। ऐसे में चाहे वैज्ञानिक हों या पर्यटक, लद्दाख का यह मठ हर किसी को आकर्षित करता है और चांद पर चलने का अनुभव भी देता है।

लामायुरू मोनेस्ट्री पहुंचने के लिए

लामाउरू लेह से लगभग 120 किमी दूर है। लेह और कारगिल से सुबह करीब 10 बजे और दोपहर 12 बजे में बसें निकलती हैं, जिनसे आप पहाड़ी पर 5 बिल्डिंग में बने मठ (Monastery) तक पहुंच सकते है। यहां हर साल युरु कब्ग्यात नामक एक वार्षिक उत्सव भी होता है, जहां देश-विदेश से कई पर्यटक लामाओं द्वारा किए जाने वाले मुखौटा नृत्य और प्रकृति की सुंदरता को देखने आते है।

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